नही भजिया थारी भुन्डी होवेला,
अरे खेलें काल धडाको,
मन रे रटले नाम हरि को,
मन रे रटले नाम गुरा को।।
ए तीन पांच की देही बनाई,
बिच माई खम्ब हवा को,
एक हजार थारे नाड्या धर दि,
पार ने पायो कला को,
मन रे रटले नाम हरी को।।
ए बारा बरस थारी बाल अवस्था,
पचीसा में थूं पाको,
गल गयो मांस लटक गयो चामडो,
जोर ना चाले कोई दवा को,
मन रे रटले नाम हरी को।।
रोम रोम मे रोग वापीयो,
दिन दिन जावें तू थाक्यों,
साता पूंचबाने हर कोई आवे,
पचे लाग्यो रोग जाबा को,
मन रे रटले नाम हरी को।।
फिर गई आंख्या नाक वेग्यो बांको,
नाड देगी कडाको,
बेटो केवे बाप हमारो,
भतीजों के काको,
मन रे रटले नाम हरी को।।
हिंदू होवे तो राम सुमिरले,
मूसलमान अल्हा को,
कहे धन्नाराम सकल आसरो,
पायो मुक्ती को नाकों,
मन रे रटले नाम हरी को।।
नही भजिया थारी भुन्डी होवेला,
अरे खेलें काल धडाको,
मन रे रटले नाम हरि को,
मन रे रटले नाम गुरा को।।
स्वर – भेरु पुरी जी गोस्वामी सोपुरा।
9928006102
प्रेषक – सिंगर ओमरामपुरा आसींद।
9680008558