कहता ऊधो तुम बिन मोहन,
ऐसे झरते नैना,
जैसे झरता झरना।।
तर्ज – मेरे नैना सावन भादो।
(राधारानी का संदेश कृष्ण तक ऊधो की जुबानी)
कहता ऊधो तुम बिन मोहन,
ऐसे झरते नैना,
जैसे झरता झरना।।
सुनी है फुलवारी,
सुनी है गौशाला
बादल बनकर निकल गए तुम,
जब से नंद के लाला-२
तड़फ तड़फ बृजबाला कहती,
कब आओगे कान्हा-२।।
सुना है वृन्दावन,
सुना है बृज सारा,
जिस दिन से हमे छोड़ गए तुम,
सुना गोकुल सारा-२
एकैक दिन एक बरस सा लगता,
मिट गया सुख और चैना-२।।
वो बातें मन भाए,
पल पल याद वो आए,
जीवन के इस कठिन समय मे,
रात को नींद न आए-२
ये नैना तेरी राह जोहती,
लौट के जल्दी आना-२।।
सुन बातें ऊधो की,
समझ गए सब कान्हा,
कण कण में मैं बसा हुआ हूँ,
उनको तुम समझाना-२
मन की आँख से जब तुम देखो,
पास मुझे ही पाना-२।।
कहता ऊधो तुम बिन मोहन,
ऐसे झरते नैना,
जैसे झरता झरना।।
– भजन प्रेषक तथा लेखक –
JASWANT SABLIYA
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