रोज रोज करता है,
मन तू बहाने,
काहे न माने तू काहे न माने।।
तर्ज – हमतो तेरे आशिक है।
कैसा प्यारा ये जन्म तूने,
गुरू से पाया है,
पर गँवाया है,
तूने हीरे को,
जैसे जरूरी है तुझे भोजन,
ऐसे ही बन्दे,
है जरूरी भजन जीने को,
बात सच्ची है ये,
नही है तराने,
काहे न माने तू काहे न माने।।
करले भजन प्राणी तर जाएगा,
यही सँग जाएगा,
तेरे काम आएगा,
कई जन्मो तक,
कोई नही साथ तेरे जाएगा,
न कोई रोएगा,
न पूछेगा तेरी सदियो तक,
कोई नही आएगा,
यम से बचाने,
काहे न माने तू काहे न माने।।
गुरू चरणो का ध्यान करले,
अभी भजले तू,
नाम जपले श्री सतगुरू का,
आवागमन तेरा कट जाएगा,
भव तर जाएगा,
कर भरोसा तू अपने प्रभू का,
जिसने जपा है नाम,
वो ही ये माने,
काहे न माने तू काहे न माने।।
रोज रोज करता है,
मन तू बहाने,
काहे न माने तू काहे न माने।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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