जो गए गुरु द्वारे,
भव से पार हो गए,
तू भी आजा गुरू द्वारे,
दिन दो चार रह गए।।
तर्ज – छुप गए सारे नज़ारे।
फँस नही जाना,
तू मोह माया में,
हुआ ना किसी का जमाना,
जग में आया तो कोई,
जतन करले,
तन ये पाया तो,
प्यारे प्रभू को भजले,
जाकर नरक मे क्यो तू,
यम की मार को सहे,
तू भी आजा गुरू द्वारे,
दिन दो चार रह गए।।
अब नही माना,
तो कब मानेगा,
कि आने को है बढ़ापा,
तेरे अपने ही,
तुझको मारेगे ताने,
होगी खासी फजीहत,
पर तू क्या जाने,
फिर पछिताए क्या होगा,
पँछी खेत खा गए,
तू भी आजा गुरू द्वारे,
दिन दो चार रह गए।।
गुरु चरणो में,
तू शीश झुकाले,
कि मिल जाएगा किनारा,
गुरू बिन कोई नही है,
इस जग मे सहारा,
जग मे सतगुरू ही है,
तारन हारा,
जो लिया गुरू सहारा,
भव से पार हो गए,
तू भी आजा गुरू द्वारे,
दिन दो चार रह गए।।
जो गए गुरु द्वारे,
भव से पार हो गए,
तू भी आजा गुरू द्वारे,
दिन दो चार रह गए।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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