साधन पे कभी न,
तू मन किया गौर,
गुरू बिन नही पाएगा मनवा,
तू जग में ठौर।।
तर्ज – सावन का महीना।
गुरू बिन ऐसा कोई नही है,
जो तुझको भव पार कराए,
ऐसा हमदम,
कही न मिलेगा,
जो तुझको सही राह दिखाए,
सच्चा हितेषी जग में,
गुरू बिन नही कोई और,
गुरू बिन नही पाएगा मनवा,
तू जग में ठौर।।
सौंप दे सतगुरु के चरणो मे,
अपने जीवन की तू नैया,
गुरु को रिझाले,
अपना बनाले,
श्री सतगुरू को अपना खिवैया,
चल तू उस रस्ते पे,
ले जाए गुरू जिस ओर,
गुरू बिन नही पाएगा मनवा,
तू जग में ठौर।।
नाम निरँतर ध्याले मनवा,
क्यो जग में तू स्वाँस गँवाए,
गुरूवाणी को अमल मे लाओ,
समय अनोखा,
बीता जाए,
जग से ध्यान हटा कर,
लगाओ गुरू की ओर,
गुरू बिन नही पाएगा मनवा,
तू जग में ठौर।।
साधन पे कभी न,
तू मन किया गौर,
गुरू बिन नही पाएगा मनवा,
तू जग में ठौर।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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