ऐ मेरे मन अभिमानी,
क्यो करता है नादानी।
तर्ज – ऐ मेरे वतन के लोगो।
शेर- है तेरे भजन की बैरा,
यहाँ कोई नही है किसी का,
ये शुभ अवसर है पाया,
भजले तू नाम हरि का,
पर गफलत की बातो मे,
बृथा ही स्वाँस गँवाए,
जो स्वाँस गई ये खाली-2,
वो लोट के फिर न आए,
वो लोट के फिर ना आए।
ऐ मेरे मन अभिमानी,
क्यो करता है नादानी,
जो भूल गया है उसको,
जरा याद करो गूरूवाणी।।
जब लटका नर्क मे था तू,
वहाँ याद किया था गुरू को,
गुरु ने फिर भेजा जग मे,
करके कृपा फिर तुझको,
आ करके तू दुनिया मे,
फँस करके मोह माया मे,
जो भूल गया है उसको,
जरा याद करो गूरूवाणी।।
उड़ जाएगा पँछी एक दिन,
रह जाएगा पिँजरा खाली,
आया था हाथ पसारे,
जाएगा हाथ ही खाली,
थोड़ी सी है जिँदगानी,
न कर तू आना कानी,
जो भूल गया है उसको,
जरा याद करो गूरूवाणी।।
ये तन कुछ काम न आया,
जिसके लिए तू आया,
वो वादा याद तू करले,
जो करके गुरू से आया,
तुझे भेजा था देके निशानी,
क्या बतलाएगा प्राणी,
जो भूल गया है उसको,
जरा याद करो गूरूवाणी।।
ऐ मेरें मन अभिमानी,
क्यो करता है नादानी,
जो भूल गया है उसको,
जरा याद करो गूरूवाणी।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
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