दास रघुनाथ का,
नंद सुत का सखा,
कुछ ईधर भी रहा,
कुछ ऊधर भी रहा,
सुख मिला श्री अवध,
और बृजवास का,
कुछ ईधर भी रहा,
कुछ ऊधर भी रहा,
दास रघुनाथ का।।
मैथली ने कभी मोद,
मोदक दिया,
राधिका ने कभी,
गोद में ले लिया,
मातृ सत्कार में,
मग्न होकर सदा,
कुछ ईधर भी रहा,
कुछ ऊधर भी रहा,
दास रघुनाथ का।।
खूब ली है प्रसादी,
अवधराज की,
खूब झूठन मिली,
यार बृजराज की,
भोग मोहन चखा,
दूध माखन चखा,
कुछ ईधर भी रहा,
कुछ ऊधर भी रहा,
दास रघुनाथ का।।
कोई नर या ईधर,
या ऊधर ही रहा,
कोई नर ना इधर,
ना उधर ही रहा,
‘बिन्दु’ दोनो तरफ,
ले रहा है मजा,
कुछ ईधर भी रहा,
कुछ ऊधर भी रहा,
दास रघुनाथ का।।
दास रघुनाथ का,
नंद सुत का सखा,
कुछ ईधर भी रहा,
कुछ ऊधर भी रहा,
सुख मिला श्री अवध,
और बृजवास का,
कुछ ईधर भी रहा,
कुछ ऊधर भी रहा,
दास रघुनाथ का।।
स्वर – कृष्ण चंद्र शास्त्री ठाकुर जी।
लेखक – बिन्दु जी महाराज।
bahut sunder