सारी दवा से अच्छी,
मेरे साँई जी की भक्ती,
झूठी नही ये बाते,
है सोलह आने सच्ची।।
तर्ज – रहा गर्दिशो में हरदम।
न हौ यकीँ किसी को,
आकर के देखे दर पे,
रहता सदा भगत के,
बाबा का हाथ सर पे,
लगती भले अजब सी,
पर बात है ये सच्ची,
सारी दवा से अच्छि,
मेरे साँई जी की भक्ती।।
जिसने भी साँई दर से,
पाई है ये दवाई,
हुआ मस्त मन उसी का,
जिसने समय से खाई,
बिरला ही कोई है जो,
पाता है ऐसी मस्ती,
सारी दवा से अच्छि,
मेरे साँई जी की भक्ती।।
तुम भी मिटालो प्राणी,
अपनी सभी बीमारी,
पीकर के मस्त हो जा,
उतरे न ये खुमारी,
परहेज जो तू करले,
तबियत हो जाए अच्छी,
सारी दवा से अच्छि,
मेरे साँई जी की भक्ती।।
सारी दवा से अच्छी,
मेरे साँई जी की भक्ती,
झूठी नही ये बाते,
है सोलह आने सच्ची।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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