मनवा राम सुमर मेरे भाई रे,
सुमरिया बिना मुक्ति नहीं होवे,
भवजल गोता खाई रे,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
लक चौरासी में भटकत भटकत,
अब के मनुष्य तन पाई रे,
ऐसो अवसर फेर नहीं आवे,
ऐसो अवसर फेर नहीं आवे,
आखिर में पछताई,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
विश्वासना माया चक्र में,
बार-बार भरनाई रे,
अंत समय जमडा ले जावे,
गणों नरक भुगताई रे,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
गुरु संत रा वचन मानले,
छोड़ दे ठुकराई रे,
सारा झगड़ा छोड़ जगत रा,
प्रभु में ध्यान लगा ले,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
देवाराम माने सतगुरु मिलिया,
सिमरन गति बताई रे,
गणपतराम कब्बू नहीं बीसरु,
राम ज्ञान गुण गाई रे,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
मनवा राम सुमर मेरे भाई रे,
सुमरिया बिना मुक्ति नहीं होवे,
भवजल गोता खाई रे,
मनवा राम सुमर मेरे भाई।।
– भजन प्रेषक –
रतनपुरी गोस्वामी,
सांवलिया खेड़ा
8290907236
Very nice bhajan