ग्वालन क्यों तू मटकी,
तू कैंसे पे मटकी।
दोहा – बरसाने की गुजरी,
मोहे रोज करें हैरान,
फंदे में तू आ फंसी,
मोहे दे गोरस को दान।
ग्वालन क्यों तू मटकी,
तू कैंसे पे मटकी,
कहा तू जावे मटकी मटकी,
धर मटका पे मटकी,
ऐ ग्वालन क्यों तू मटकी,
तू कैंसे पे मटकी।।
तू तो है मस्त गुजरिया,
तू चाल चले मस्तानी,
ऐ तू चाल चले मस्तानी,
केसु के कोई रोग लगयो है,
कैसु भई वोरानी री ग्वालन,
कैसू भई वीरानी री ग्वालन,
पहले धर तू मटकी,
फिर तू भर तो मटकी,
कहा तू जावे मटकी मटकी,
धर मटका पे मटकी,
ऐ ग्वालन क्यो तू मटकी,
तू कैंसे पे मटकी।।
रोज रोज तू चुप निकलके,
या मारग पे जावे री ग्वालन,
या मारग पे जावे री ग्वालन,
तनक न दही चखावे मोकु,
ऐसे ही बहकावे मोकु,
ऐसे ही बहकावे री ग्वालन,
ऐसे ही बहकावे,
रीती करदे मटकी,
यही पे धरदे मटकी,
ऐ री रीती करने मटकी,
यही पे धरदे मटकी,
कहा तू जावे मटकी मटकी,
धर मटका पे मटकी,
ऐ ग्वालन क्यो तू मटकी,
तू कैंसे पे मटकी।।
आज अकेली मिल गई तो,
तेरा धनगोरस लुटबऊ,
तेरा धनगोरस लुटबाऊ,
पकडा पकडी करे तो,
सबरे ग्वालन को बुलबाऊ,
सबरे ग्वालन को बुलबाऊ,
नहीं ना छोडू मटकी,
तेरी फोडू मटकी,
कहा तू जा रही मटकी मटकी,
धर मटका पे मटकी,
ऐ ग्वालन क्यो तू मटकी,
तू कैंसे पे मटकी।।
ग्वालन क्यो तू मटकी,
तू कैंसे पे मटकी,
कहा तू जावे मटकी मटकी,
धर मटका पे मटकी,
ऐ ग्वालन क्यों तू मटकी,
तू कैंसे पे मटकी।।
स्वर – बाबा रसिक पागल महाराज,
तथा चित्र विचित्र जी।
Sent By – Pramod Meena