रोज रोज का ओलमा क्यों,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।
भला घरा को लाडलो,
बदनामी होवे र क़ानूडा,
रोज रोज का ओलमा क्यो,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।
गुजरिया का चक्कर में क्यों,
पड़ ग्यो रे म्हारा क़ानूडा,
रोज रोज का ओलमा क्यो,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।
गोकुल का कांकड़ में गाया,
चरावे म्हारा क़ानूडा,
रोज रोज का ओलमा क्यो,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।
मने एकली देख मटकी,
फोड़े रे म्हारा क़ानूडा,
रोज रोज का ओलमा क्यो,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।
जमना नहाती गुजरिया का,
चीर चुरावे क़ानूडा,
रोज रोज का ओलमा क्यो,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।
रोज रोज का ओलमा क्यों,
ल्यावे म्हारा कानुड़ा।।
लेखक – सिंगर प्रकाश जी माली,
मेहंदवास।
प्रेषक -सिंगर मुकेश बंजारा,
बनियानी।
मो.7073387766
Nice song