क्यों चुप बैठे हो लगता कुछ है माजरा,
कुछ तुम बोलो कुछ हम बोले ओ साँवरा,
है तेरे नाम की मस्ती में,
दिल बावरा ओ संवारा,
क्यों चुप बैठे हो लगता कुछ है माजरा।।
तर्ज – कब तक चुप बैठें अब तो कुछ है।
दो चार कदम पे तुम हो,
दो चार कदम पे हम है,
बस इतनी सी दुरी है,
फिर ख़तम हुए सब गम है,
हर पल दिल में रहते हो तुम साँवरा,
ओ साँवरा ओ साँवरा,
क्यों चुप बैठे हो लगता कुछ है माजरा।।
कैसी ये प्रीत बढ़ाई,
कब से है रीत चलाई,
जैसे ही मुरली बजाते,
राधा थी दौड़ी आई,
तुम आज भी वो ही,
जादूगर हो ओ संवारा,
ओ साँवरा ओ साँवरा,
क्यों चुप बैठे हो लगता कुछ है माजरा।।
ऐसा है एक एक प्रेमी,
हर पल वो तुझपे मिटा है,
आकाश में सुनापन था,
तेरी प्यार की छाई घटा है,
अब साँवरा बस साँवरा बस साँवरा,
ओ साँवरा ओ साँवरा,
क्यों चुप बैठे हो लगता कुछ है माजरा।।
क्यों चुप बैठे हो लगता कुछ है माजरा,
कुछ तुम बोलो कुछ हम बोले ओ साँवरा,
है तेरे नाम की मस्ती में,
दिल बावरा ओ संवारा,
क्यों चुप बैठे हो लगता कुछ है माजरा।।
– प्रेषक एवं गायिका –
आकांछा मित्तल।
9837065099
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