तेरी अनजानी राहों पर,
एक दिन जब मैं आया था,
थी मुझ में हिचक फिर भी,
तूने गले लगाया था,
तेरी अनजानी राहो पर,
एक दिन जब मैं आया था।।
तर्ज – एक प्यार का नगमा है।
ना मुझमे थी वो आस्था,
ना विश्वास जोरो पे था,
ना वैसा था दीवानापन,
जैसा देखा की औरो में था,
हाँ नैनो ने दर्शन कर,
एक दरिया बहाया था,
थी मुझ में हिचक फिर भी,
तूने गले लगाया था,
तेरी अनजानी राहो पर,
एक दिन जब मैं आया था।।
उस दिन से मेरे बाबा,
दिन पल पल बदलने लगे,
मेरी मुरझाई बगिया में फुल,
खुशियों के खिलने लगे,
तेरी किरपा के मेघों ने,
सावन बरसाया था,
थी मुझ में हिचक फिर भी,
तूने गले लगाया था,
तेरी अनजानी राहो पर,
एक दिन जब मैं आया था।।
तेरे नैनो की भाषा को,
जो प्रेमी समझ गया,
उसके जीवन का उलझा हर,
धागा सुलझ गया,
तू सचमुच ही वैसा है,
जैसा सबने बताया था,
थी मुझ में हिचक फिर भी,
तूने गले लगाया था,
तेरी अनजानी राहो पर,
एक दिन जब मैं आया था।।
तू हारे का साथी है,
ये सबको बताता हूँ,
मैं ‘ललित’ भजन गाकर,
तेरी महिमा सुनाता हूँ,
अब चलूँ मैं उसी रस्ते,
जो तूने दिखाया था,
थी मुझ में हिचक फिर भी,
तूने गले लगाया था,
तेरी अनजानी राहो पर,
एक दिन जब मैं आया था।।
तेरी अनजानी राहों पर,
एक दिन जब मैं आया था,
थी मुझ में हिचक फिर भी,
तूने गले लगाया था,
तेरी अनजानी राहो पर,
एक दिन जब मैं आया था।।
स्वर – ललित सूरी जी।