श्याम को जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते।
तर्ज – देखते देखते।
दोहा – जिसने तुमको दिल से पुकारा,
तुमने उसका जीवन संवारा,
मैं भी तुमको आज पुकारूँ,
आकर मुझको दे दो सहारा।
श्याम को जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते,
दीन कमजोर निर्धन सुदामा की भी,
कोठियाँ बन गई देखते देखते।।
एक नरसी हुआ था भगत श्याम का,
नाम प्यारा लगा था उसे श्याम का,
नरसी पागल हुआ श्याम की चाह में,
श्याम बहतैया बने पुत्र के ब्याह में,
पुरे गाँव के हर एक परिवार में,
हुंडिया बंट गई देखते देखते।
श्याम कों जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते,
दीन कमजोर निर्धन सुदामा की भी,
कोठियाँ बन गई देखते देखते।।
जब मीरा हुई श्याम की प्रेयशी,
सारी दुनिया ने उनकी उड़ाई हंसी,
जहर पिने की जब जान पर आ पड़ी,
श्याम ने उसको अम्रत किया उस घडी,
श्याम के नाम से मीरा बाई की भी,
जिंदगी बच गई देखते देखते।
श्याम कों जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते,
दीन कमजोर निर्धन सुदामा की भी,
कोठियाँ बन गई देखते देखते।।
‘अनुज”मोहित’ लगा लो लगन श्याम से,
कौन वाकिफ नही इनके अंजाम से,
बंद माता पिता इनके जब जेल में,
मुक्त उनको किया खेल ही खेल में,
राजा नारी कहे उनकी चाबी बिना,
बेड़िया खुल गई देखते देखते।
श्याम कों जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते,
दीन कमजोर निर्धन सुदामा की भी,
कोठियाँ बन गई देखते देखते।।
श्याम को जिसने चाहा,
उसी भक्त की,
झोलियाँ भर गई देखते देखते,
दीन कमजोर निर्धन सुदामा की भी,
कोठियाँ बन गई देखते देखते।।
स्वर – मोहित चौहान।