पुजारी खोल जरा पट द्वार,
बंद कोठरी में बैठा है,
बंद कोठरी में बैठा मेरा,
सांवरिया सरकार,
पुजारी खोंल जरा पट द्वार।।
थके हुए है भक्त बिचारे,
मोहनी रूप दिखा दे प्यारे,
प्रेमी जन को ना बिसरा रे,
आग बरसता सूरज सिर पर,
आग बरसता सूरज सिर पर,
लम्बी लगी कतार,
पुजारी खोंल जरा पट द्वार।।
निष्ठुर क्यों भक्तो को धकेले,
व्यर्थ करे झंझट ये झमेले,
भक्त बिना भगवान अकेले,
दीनानाथ की शरण पड़ा है,
दीनानाथ की शरण पड़ा है,
ये दुखिया संसार,
पुजारी खोंल जरा पट द्वार।।
सेवा ही अधिकार है तेरा,
मैं ठाकुर का ठाकुर मेरा,
बीच भला क्या काम है तेरा,
मंदिर कारागार नही हैं,
मंदिर कारागार नही है,
जिस पर तेरा अधिकार,
पुजारी खोंल जरा पट द्वार।।
बाहर प्रेमी तरस रहा है,
अन्दर ठाकुर सिसक रहा है,
हर्ष कहाँ तू खिसक रहा है,
जिव ब्रम्ह को मिलने दे क्यों,
जिव ब्रम्ह को मिलने दे क्यों,
व्यर्थ बना दिवार,
पुजारी खोंल जरा पट द्वार।।
पुजारी खोल जरा पट द्वार,
बंद कोठरी में बैठा है,
बंद कोठरी में बैठा मेरा,
सांवरिया सरकार,
पुजारी खोंल जरा पट द्वार।।