चाल सखी सत्संग में चाला,
दोहा – तपस्या बरस हजार की,
और सत्संग की पल एक,
तो भी बराबर ना होवे,
गुरू सुखदेव कियो विवेक।
कौण जगत में एक है और,
कौन जगत में दोय,
ब्रह्म जगत में एक है,
और ब्रह्मा विष्णु दोय।
कौण जगत में हँस रहा,
और कौण जगत में रोय,
पाप जगत में हँस रहा,
बीरा धर्म जगत में रोय।
चाल सखी सत्संग में चाला,
सत्संग में सतगुरु आसी,
हरि चरणों की हो जा दीवानी,
नहीं तो जुगड़ा में बह जासी,
चाल सखि सत्संग में चाला,
सत्संग में सतगुरु आसी।।
ब्रह्मा आसी विष्णु आसी,
शिव जी आसी बाबो कैलाशी,
छोटो सो गणपति भी आसी,
मां गोरा संग मेला सी,
चाल सखि सत्संग में चाला,
सत्संग में सतगुरु आसी।।
राम भी आसी लखन भी आसी,
माधोबन का बनवासी,
हनुमान सो पायक आसी,
मां सीता संग मे लासी,
चाल सखि सत्संग में चाला,
सत्संग में सतगुरु आसी।।
हरि की सेवा गुरुशरण में,
बणत बणत बीरा बण जासी,
मीठालाल सॉंगलपति बोलियां,
कट ज्या जीव थारी चौरासी,
चाल सखि सत्संग में चाला,
सत्संग में सतगुरु आसी।।
चाल सखी सत्संग में चाला,
सत्संग में सतगुरु आसी,
हरि चरणों की हो जा दीवानी,
नहीं तो जुगड़ा में बह जासी,
चाल सखि सत्संग में चाला,
सत्संग में सतगुरु आसी।।
गायक – रामकुमार मालुणी जी।
प्रेषक – महावीर दादोली
7014219558
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