ना जाने ये दुनिया,
किस पे इतराती है,
सब कुछ यहीं रह जाता,
जब घड़ी वो आती है,
ना जानें ये दुनिया,
किस पे इतराती है।।
पानी के बुलबले सी,
औकात है दुनिया की,
फिर भी ये सदियों का,
सामान सजाती है,
ना जानें ये दुनिया,
किस पे इतराती है।।
यहाँ क्या तेरा मेरा,
नही कोई किसी का है,
नादान है ये दुनिया,
जो अपना बताती है,
ना जानें ये दुनिया,
किस पे इतराती है।।
माना की ये धन माया,
एक सुख का साधन है,
बेकार है वो दौलत,
जो प्रभु को भुलाती है,
ना जानें ये दुनिया,
किस पे इतराती है।।
किस्मत दे अगर धोखा,
मत इसका गिला करना,
सुख दुःख है वो छाया,
जो आती जाती है,
ना जानें ये दुनिया,
किस पे इतराती है।।
दुःख पाए ‘गजेसिंह’ क्यों,
तू श्याम शरण में जा,
फिर देख दया उसकी,
क्या रंग दिखाती है,
ना जानें ये दुनिया,
किस पे इतराती है।।
ना जाने ये दुनिया,
किस पे इतराती है,
सब कुछ यहीं रह जाता,
जब घड़ी वो आती है,
ना जानें ये दुनिया,
किस पे इतराती है।।
स्वर – रजनी राजस्थानी।
प्रेषक – हितेश मित्तल (जोधपुर)