यो के तेरो रुसणो,
दोहा – श्याम श्याम नित मैं रटूं,
श्याम ही जीवन प्राण,
श्याम भक्त जग में बड़े,
मैं उनको करूँ प्रणाम।
यो के तेरो रुसणो,
घड़ी घड़ी के माय,
जावां भी तो जावां मैं कठे रे,
कितणो नचावेगो रे श्याम,
ओ बाबा कितणो नचावेगो रे श्याम।।
तर्ज – क्या करते थे साजना।
एक घड़ी तो खूब हसावे,
दूजी घड़ी तू बदल क्यों जावे,
तेरे जिसों बाबा मन्ने बनाले,
या के मेरे सो तू बण जा रे,
म्हे तो लूळा, विनती करा,
तू भी लूळ जा तो तेरो के घटे रे,
कितणो नचावेगो रे श्याम,
ओ बाबा कितणो नचावेगो रे श्याम।
यों के तेरो रुसणो,
घड़ी घड़ी के माय,
जावां भी तो जावां मैं कठे रे,
कितणो नचावेगो रे श्याम,
ओ बाबा कितणो नचावेगो रे श्याम।।
आता ही रेस्या म्हे हां तेरा रे,
भूल भरोसे तू भी तो आ रे,
तेरे मेरे कोई गांठ उलझगी,
सुलझा सकूँ ना तू सुलझा रे,
जैसो भी हूँ, हूँ तो तेरो,
लागी नजरा ना तेरे से हटे रे,
कितणो नचावेगो रे श्याम,
ओ बाबा कितणो नचावेगो रे श्याम।
यों के तेरो रुसणो,
घड़ी घड़ी के माय,
जावां भी तो जावां मैं कठे रे,
कितणो नचावेगो रे श्याम,
ओ बाबा कितणो नचावेगो रे श्याम।।
जब भी तू रूसे मैं ही मनाऊँ,
सेवा पे ठाकुर क्यों इतराऊ,
नाम की तेरे कलम चलाऊ,
सेठ तू मेरो मौज मनाऊँ,
‘लहरी’ शरण, मैं हूँ शरण,
ऐसी नौकरी मिले तो कुण नटे रे,
कितणो नचावेगो रे श्याम,
ओ बाबा कितणो नचावेगो रे श्याम।।
यो के तेरो रुसणो,
घड़ी घड़ी के माय,
जावां भी तो जावां मैं कठे रे,
कितणो नचावेगो रे श्याम,
ओ बाबा कितणो नचावेगो रे श्याम।।
स्वर – उमा लहरी जी।