राम मेरे अब तो आ जाओ,
वीरान अयोध्या नगरी है।
दुनिया वाले क्या जाने,
तेरे भक्तों पे क्या गुजरी है,
राम मेरें अब तो आ जाओ,
वीरान अयोध्या नगरी है।।
तम्बू में बैठे हो देख के,
अखियाँ नीर बहाती है,
राजनीती करने वालो को,
फिर भी शरम ना आती है,
अब क्या हालत सुधरेगी,
जो अभी तलक ना सुधरी है,
राम मेरें अब तो आ जाओ,
वीरान अयोध्या नगरी है।।
कार सेवको की बलिदाने,
भी बेकार गई रघुवर,
जाने क्यों अधर्म के आगे,
धर्म कांपता है थर थर,
क्यों लाचार है भक्त तेरे,
क्यों झुकी सत्य की पगड़ी है,
राम मेरें अब तो आ जाओ,
वीरान अयोध्या नगरी है।।
न्याय पालिका से भी अब,
उम्मीद कोई बाकि ना रही,
सत्याधिशो ने भी अब तक,
पक्ष में कुछ ना सुनी ना कही,
‘अनुपम’ विनय करे ‘सरिता’,
बडी कांटो भरी ये डगरी है,
राम मेरें अब तो आ जाओ,
वीरान अयोध्या नगरी है।।
दुनिया वाले क्या जाने,
तेरे भक्तों पे क्या गुजरी है,
राम मेरे अब तो आ जाओ,
वीरान अयोध्या नगरी है।।
स्वर – सरिता जी सरगम।