हे श्याम तेरी माया,
कोई जान नहीं पाए,
तू छाछ से बस रीझे,
तुलसी पे बिक जाए,
तू छाछ से बस रीझे,
तुलसी पे बिक जाए,
हें श्याम तेरी माया,
कोई जान नहीं पाए।।
उस मित्र सुदामा की,
तक़दीर बदल डाली,
तेरे द्वार वो आया था,
लेकर झोली खाली,
इक तंदुल के बदले,
त्रिलोक लुटा आए,
हें श्याम तेरी माया,
कोई जान नहीं पाए।।
इतनी वैभवशाली,
कोई पार नहीं पाए,
जिनका दर्शन करने,
त्रिलोकी खुद आए,
वो ग्वालों संग धेनु,
जंगल में चारा लाए,
हें श्याम तेरी माया,
कोई जान नहीं पाए।।
तू प्रेम का भूखा है,
अंदाज अनूठा है,
भक्तो के घर खाए,
भक्तो का झूठा है,
भीलनी के बेर चखे,
और मान बढ़ा आए,
हें श्याम तेरी माया,
कोई जान नहीं पाए।।
ये ‘हर्ष’ कहे तेरा,
हर नियम निराला है,
अम्रत में बदल देता,
तू विष का प्याला है,
सेवक का मान बढे,
चाहे तेरा घट जाए,
हें श्याम तेरी माया,
कोई जान नहीं पाए।।
हे श्याम तेरी माया,
कोई जान नहीं पाए,
तू छाछ से बस रीझे,
तुलसी पे बिक जाए,
तू छाछ से बस रीझे,
तुलसी पे बिक जाए,
हें श्याम तेरी माया,
कोई जान नहीं पाए।।
स्वर – स्वाति जी अग्रवाल।