दुसरो की राह में,
बिछाता है शूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे।।
तर्ज – छुप गया कोई रे दूर से।
समाई है ऐसी सोच,
जाने क्या दिमाग में,
जलता ही रहा सदा,
ईर्ष्या की आग में,
निंदा पराई करता,
निंदा पराई करता,
रहा तू फिजूल में,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे।।
भूख से सताए को ना,
दिया एक ग्रास भी,
बुझाई गई ना किसी,
प्यासे की प्यास भी,
इंसानियत का जो था,
इंसानियत का जो था,
फर्ज गया भूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे।।
निर्बल गरीब दीन,
दुखियों को निहार के,
कभी भी ना बोले तूने,
बोल उनसे प्यार के,
अपने ही स्वार्थ में,
अपने ही स्वार्थ में,
रहा मशगूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे।।
फायदा हुआ क्या उम्र,
लम्बी जो पा गया,
अनमोल हिरा जन्म,
व्यर्थ ही गँवा गया,
मधुर जिंदगी में डाली,
मधुर जिंदगी में डाली,
कुकर्मो की धूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे।।
दुसरो की राह में,
बिछाता है शूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे,
कैसे मिलेंगे तुझे,
खुशियों के फूल रे।।