मैं तो बरसाने जाऊँगी,
श्री जी ने बुलाया है,
श्यामा ने बुलाया है,
मै तो बरसाने जाऊँगी,
लौट वापिस न आऊँगी।।
हुई किरपा श्री जी,
मुझे पास बुलाया है,
बरसाने में ही मुझको,
ठाकुर से मिलाया है,
दर्श ठाकुर का पाऊंगी,
लौट वापिस न आऊँगी।।
मतलब के रिश्ते है,
सब मन के काले है,
हम क्यू ना गर्व करे,
हम श्री जी वाले है,
हम क्यू ना गर्व करे,
बरसानेवाले है,
चौखट पे है जीना मुझे,
चौखट पे मर जाऊगी,
लौट वापिस न आऊँगी।।
“मोहित” पागल की तो,
तू ही रखवारी है,
“हम सब” की तो प्यारी,
वृषभानु दुलारी है,
किरपा से अपनी किशोरी की,
मैं दासी बन जाऊँगी,
लौट वापिस न आऊँगी।।
बरसाने में राधे,
करुणा बरसाती है,
किरपा जिस पे करदे,
उसे बरसाना बसाती है,
जिद है ये “चरनजीत” की,
जिद है ये तेरी दासी की,
बृज में ही मर जाऊँगी,
लौट वापिस न आऊँगी।।
मैं तो बरसाने जाऊँगी,
श्री जी ने बुलाया है,
श्यामा ने बुलाया है,
मै तो बरसाने जाऊँगी,
लौट वापिस न आऊँगी।।
– स्वर एवं लेखक –
चरनजीत बरसाने वाले(मोहित)
7206525965