आओ दीप जलाएँ श्याम नाम का,
श्याम बिना ये जीवन किस काम का,
बोलो श्याम की जय,
मेरे श्याम की जय,
प्यारे श्याम की जय,
बाबा श्याम की जय।।
तर्ज – मैं बालक तू माता शेरावालिये।
शीश के दानी की महिमा को,
जन जन मे पहुंचाये,
श्याम प्रेम की ज्योत जगाकर,
उजियारा फैलाये,
सरस सलोने साँवरिये को,
मन मंदिर में बसाये,
मीठे मीठे भजन सुना कर,
अमृत धार बहाएं,
पावन दर्शन पाए बाबा श्याम का,
श्याम बिना ये जीवन किस काम का।।
एक दीप मेरे श्याम नाम का,
जिस घर मे जल जाए,
उस घर में घुसने से पहले,
संकट भी घबराये,
लीले चढ़कर श्याम स्वयं ही,
प्रेमी के घर आये,
मोरछड़ी की पहरेदारी,
आठो पहर लहराये,
मिलता वहां नज़ारा खाटु धाम का,
श्याम बिना ये जीवन किस काम का।।
मन को मीरा तन को तुलसी,
रूह रसखान बना ले,
श्याम नाम का पीकर प्याला,
गीत ख़ुशी के गा ले,
‘तरुण’ के संग में छोड़ ज़माना,
श्याम शरण तू पा ले,
अंत समय में श्याम मिलन हो,
ऐसा भाग बना ले,
बन जा रे परवाना मेरे श्याम का,
श्याम बिना ये जीवन किस काम का।।
आओ दीप जलाएँ श्याम नाम का,
श्याम बिना ये जीवन किस काम का,
बोलो श्याम की जय,
मेरे श्याम की जय,
प्यारे श्याम की जय,
बाबा श्याम की जय।।
लेखक – तरुण वर्मा।
प्रेषक – अंकुर अग्रवाल।
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