राघव को मैं ना दूंगा मुनिनाथ मरते मरते,
मेरे प्राण ना रहेंगे यह दान करते करते।।
जल के बिना कदाचित मछली शरीर धारे,
पर मैं ना जी सकूंगा इनको बिना निहारे,
कौशिक सिहर रहे हैं मेरे अंग डरते डरते,
राघव को मैं ना दूँगा मुनिनाथ मरते मरते,
मेरे प्राण ना रहेंगे यह दान करते करते।।
कर यत्न चौथेपन में सुत चार मैंने पाये,
पितु मातु पुरजनों को रघुचंद्र ने जिलाया,
लोचन चकोर तन्मय छविपान करते करते,
राघव को मैं ना दूँगा मुनिनाथ मरते मरते,
मेरे प्राण ना रहेंगे यह दान करते करते।।
चलते विलोक प्रभु को होगा उजाड़ कौशल,
मंगल भवन के जाते संभव कहाँ है मंगल,
सीचें कृपालु तरु को मृदुपात झरते झरते,
राघव को मैं ना दूँगा मुनिनाथ मरते मरते,
मेरे प्राण ना रहेंगे यह दान करते करते।।
होवे प्रसन्न मुनिवर लै राजकोष सारा,
रानी सुतो के संग में वन में करूँ गुजारा,
ले गोद राम शिशु को सुख मोद भरते भरते,
राघव को मैं ना दूँगा मुनिनाथ मरते मरते,
मेरे प्राण ना रहेंगे यह दान करते करते।।
लड़के है राम लक्ष्मण कैसे करे लड़ाई,
गिरिधर प्रभु को देते बनता नही गोसाईं,
कह यूँ पड़े चरण पर दृग नीर ढ़रते ढ़रते,
राघव को मैं ना दूँगा मुनिनाथ मरते मरते,
मेरे प्राण ना रहेंगे यह दान करते करते।।
राघव को मैं ना दूंगा मुनिनाथ मरते मरते,
मेरे प्राण ना रहेंगे यह दान करते करते।।
स्वर – मुरलीधर महाराज जी।
Bahut sundar bhajan hai Guru ji Sadar Pranam