कुण जाने कद कुण से भेष में,
सांवरियो घर आ जावे,
घर आया को मान राखजो,
भूल कोई ना हो जावे।।
वो प्राणी तो है बड़भागी,
जा के घर में कोई आवे,
वर्ना किने फुरसत है जो,
समय बितावन ने आवे,
मान अतिथि को रखने से,
ईश्वर भी खुश हो जावे,
घर आया को मान राखजो,
भूल कोई ना हो जावे।।
आज अतिथि देवो भव की,
घटने लगी है मान्यता,
भाई चारो ख़तम हो रह्यो,
खोवण लागि सभ्यता,
मिनख धर्म और परंपरा की,
संस्कृति नहीं घट जावे,
घर आया को मान राखजो,
भूल कोई ना हो जावे।।
घर आया की आवभगत से,
धर्म पुण्य होवे भारी,
मिनखा जोनी सफल होवे है,
या ही है दुनियादारी,
‘रवि’ कवे कद आवे अतिथि,
जद दानो पानी ल्यावे,
घर आया को मान राखजो,
भूल कोई ना हो जावे।।
कुण जाने कद कुण से भेष में,
सांवरियो घर आ जावे,
घर आया को मान राखजो,
भूल कोई ना हो जावे।।
स्वर / रचना – रवि शर्मा ‘सूरज’