आंख्या देखो भाईड़ा,
दोहा – तपस्या बरस हजार री,
सत्संगत पल एक,
तो भी बराबर नहीं तुले,
सुखदेव कियो विवेक।
कदली सीप भुजंग मुख,
एक स्वाति गुण तीन,
जैसी संगति बैठिये,
तैसो ही फल दीन।
सत्संग की आधी घड़ी,
आधी में पुनि आध,
तुलसी संगत साध की,
कटे करोड़ अपराध।
नहीं हैं तेरा कोय,
नहीं तू कोय का,
अरे हा बाज़िन्द स्वार्थ रा संसार,
घणा दिन दोय का।
बड़ा भया तो क्या भया,
दिल का नहीं उदार,
बड़ा तो एक समुन्द्र हैं,
जिनका पानी खार।
अरे हां पलटू उनसे तो,
एक कुआँ भला,
जिनसे पीये सकल संसार।।
आंख्या देखो भाईड़ा,
कानों री खिड़कियां खोलो रे,
सत्संग में चालो रे,
मिलसी राम जी।।
भगवा तो रंगिया रे भाई,
राम नजर नहीं आवे रे,
अपना माही ला ने रंग लो रे,
मिलसी राम जी।
आँख्या देखो भाईड़ा,
कानों री खिड़कियां खोलो रे,
सत्संग में चालो रे,
मिलसी राम जी।।
पत्थर ने पूजो रे भाई,
राम नजर नहीं आवे रे,
अपणे सतगुरू ने पूजो रे,
मिलसी राम जी।
आँख्या देखो भाईड़ा,
कानों री खिड़कियां खोलो रे,
सत्संग में चालो रे,
मिलसी राम जी।।
नहाया ने धोया ने भाई,
राम नजर नहीं आवे रे,
ऐबो ने छोड़ो रे,
मिलसी राम जी।
आँख्या देखो भाईड़ा,
कानों री खिड़कियां खोलो रे,
सत्संग में चालो रे,
मिलसी राम जी।।
तीर्थ में नहाया मैं भाई,
राम नजर नहीं आवे रे,
अपणे हिरदे ने धोवो रे,
मिलसी राम जी।
आँख्या देखो भाईड़ा,
कानों री खिड़कियां खोलो रे,
सत्संग में चालो रे,
मिलसी राम जी।।
रतनदास चरणो रा चाकर,
सतगुरू शरणे आया जी,
चरणों में झुक जाओ,
मिलसी राम जी।
आँख्या देखो भाईड़ा,
कानों री खिड़कियां खोलो रे,
सत्संग में चालो रे,
मिलसी राम जी।।
आंख्या देखो भाईड़ा,
कानों री खिड़कियां खोलो रे,
सत्संग में चालो रे,
मिलसी राम जी।।
गायक – राघवनंदजी महाराज।