हंस चल्यो घर आपणे,
रोवो मती भाई।
दोहा – आया है जो जायेगें,
राजा रंक फकीर,
एक सिंघासन चढ़ चले,
एक बन्ध्या जाय जंजीर।
आज काल दिन पाँच में,
जंगल होसी वास,
ऊपर ऊपर हल चलें,
ढोर चरेंगे घास।
ये अवसर चेत्या नहीं,
और पशु ज्यूँ पा ली देह,
राम नाम जाणे बिना,
अंत पड़ी मुख खेह।
रज्जब किसको रोविये,
हँसिये कौन विचार,
गया सो आवे नहीं,
रया सो जावण हार।।।
हंस चल्यो घर आपणे,
रोवो मती भाई,
जो वहाँ सू यहाँ भेजिया,
ज्यों लिया है बुलाई,
हंस चलियो घर आपणे।।
खेल मंडियो बाजार में,
सब देखण आवे,
देख तमाशों घर चले,
क्यों नट पिछतावे,
हंस चलियो घर आपणे।।
राचमाल थाती धरे,
बरते नर भाया,
धणी रे सम्भाले आय के,
मत बदलो भाया,
हंस चलियो घर आपणे।।
सांपा संग गाया चरे,
संब ग्वाल चरावे,
धणी रे पिछाणे आयके,
भळ क्यूँ पिछतावे,
हंस चलियो घर आपणे।।
मेला में सुखराम केवे,
सब ही चल आवे,
लेवा देवा हैं नहीं,
फिर फिर पाछा जावे,
हंस चलियो घर आपणे।।
हंस चाल्यो घर आपणे,
रोवो मती भाई,
जो वहाँ सू यहाँ भेजिया,
ज्यों लिया है बुलाई,
हंस चलियो घर आपणे।।
गायक – देवरी धाम महाराज।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052