मन में बाजी शहनाई,
कि फागण आया है,
फागण आया है,
फागण तो आया है।।
तर्ज – सावन को आने दो।
कार्तिक सुदी की ग्यारस,
ज्यूँ ज्यूँ है बीते जाती,
चंग धमालों की गूंजे,
कानों मेरे है आती,
सब प्रेमी नाचे है,
संग श्याम भी नाचे है,
और मुख से बांचे है,
फागण आया है,
फागण तो आया है।।
टिकट कटा लेते है,
खाटू नगरीया जाते,
पैदल मिल रींगस से,
श्याम निशान उठाते,
हम पैदल चलते है,
नाम श्याम का जपते है,
और हिवड़े से कहते है,
फागण आया है,
फागण तो आया है।।
खाटू ज्यूँ हम पहुंचे,
दरबार में हम जाएं,
अपने बाबा को हम,
होली का रंग लगाएं,
हम निशान चढ़ाते है,
वो किरपा बरसाते है,
और हम मौज में गाते है,
फागण आया है,
फागण तो आया है।।
फागण की वो बारस,
जैसे ही निडे आती,
पलके भीगी ‘केशव’ की,
नजरे नीर मय बहाती,
हम अश्क बहाते है,
तोरण द्वार पे आते है,
रोते अधर ये कहते है,
फागण बीता रे,
फागण बीता रे।।
मन में बाजी शहनाई,
कि फागण आया है,
फागण आया है,
फागण तो आया है।।
Singer – Arpita Pandit