आप साहिब किरतार हो,
मैं हूँ बन्दा तोरा।
दोहा – सतगुरु से करूँ दंडवत बन्दगी,
और कोटि कोटि प्रणाम,
कीट न जाणे भृङ्ग का,
गुरु करले आप समान।
गुरु गोविंद कर जाणिये,
रहिए शब्द समाय,
मिले तो दंडवत बन्दगी,
नहीं तो पल पल ध्यान लगाय।
मंगल में मंगल करण,
मंगल रूप सतगुरु कबीर,
ध्यान धरत ना सकल,
इंव कर्म जनित भव पीर।
आप साहिब किरतार हो,
मैं हूँ बन्दा तोरा,
रोम रोम गुनाहगार हूँ,
गुनाह मेटो साहिब मेरा,
आप साहिब किरतार हों।।
दशों द्वारा दाता गंध हैं,
सोई गंधम गंदा,
उत्तम आपरो एक नाम हैं,
विसरे सोई अंधा,
आप साहिब किरतार हों।।
गुण तज अवगुण दाता बहुत किया,
आप सू नहीं छाना,
तुमसे छिपाया दाता कहाँ रखूं,
आप घट घट री जाणों,
आप साहिब किरतार हों।।
रहम करो रहमानिया,
म्हां पर दया विचारो,
भक्ति पदार्थ देय ने,
आवागमन निवारो,
आप साहिब किरतार हों।।
साहिब कबीर कृपा करो,
म्हां पर दया विचारो,
धर्मी दास गरीब ने,
अपणो कर तारो,
आप साहिब किरतार हों।।
आप साहिब किरतार हों,
मैं हूँ बन्दा तोरा,
रोम रोम गुनाहगार हूँ,
गुनाह मेटो साहिब मेरा,
आप साहिब किरतार हों।।
स्वर – संत वैरागी बाई जी।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार जी।
आकाशवाणी सिंगर। 9785126052