तू दयालु दीन हों,
तू दानी हों भिखारी,
हों प्रसिद्ध पातकी,
तू पाप पुंज हारी,
तू दयालु दीन हो।।
नाथ तू अनाथ को,
अनाथ कौन मोसो,
मो सामान आरत नहीं,
आरती हर तोसो,
तू दयालु दीन हो।।
ब्रम्ह तू हों जीव तू है,
ठाकुर हों चेरो,
तात मात गुरु सखा,
तू सब विधि ही मेरो,
तू दयालु दीन हो।।
तोही मोहि नाते अनेक,
मानिए जो भावे,
ज्यो त्यों तुलसी कृपालु,
चरण शरण आवे,
तू दयालु दीन हो।।
तू दयालु दीन हों,
तू दानी हों भिखारी,
हों प्रसिद्ध पातकी,
तू पाप पुंज हारी,
तू दयालु दीन हो।।
स्वर – अनुराधा जी पौडवाल।
प्रेषक – आशीष कुमरावत
6260018043