बाजे छे झीणा झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा।
दोहा – सौ बिजलियां रुके नहीँ,
नही रुके बादल रो वेग,
जम्मो जगायो हऱी नाम रो,
थाने धिन हो धारु मेघ।
बाजे छे झीणा झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा,
घूरे जुगो जूग झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा।।
शुद्रकार सिंधु में सोई,
कई अमर पद दिना,
खम्मा घणी महाराज मेघ ने,
दान अमोलक दीनां,
बाजे छै झीणा झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा।।
रिख भेरँग ऱी चेली श्रीयादे,
शिर पर हाथ दिना,
बलती निवे मूं बछिया तारिया,
जिण साँचा शब्द लीना,
बाजे छै झीणा झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा।।
गढ़ कुम्भल में राणा कुंभोजी,
संतो ने जेल दीनां,
दे परवोणा सन्त छोड़ाया,
अमर पट्टा लिख दीनां,
बाजे छै झीणा झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा।।
गढ़ पाटण में मेघ माया जी,
काया रा दान दीनां,
सरवर मांई काया होमी,
पछे नगरी नीर पीना,
बाजे छै झीणा झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा।।
गढ़ जोधाणे राजाराम रिख,
दान काया रा दीनां,
मैहर भई मेहरान थरपियो,
नाम जुगो जुग लिना,
बाजे छै झीणा झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा।।
घर धारु रे पांव धराणा,
जोगी आया जूना,
घर रिखियों रे जम्मो जगायो,
माल मली कर दीनां,
बाजे छै झीणा झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा।।
शिर पर हाथ वो अलख धणी रो,
कई सन्त हुआ प्रवीणा,
मेघवंशी रिख रामचन्द्र,
भजन ही लिख दीनां,
बाजे छै झीणा झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा।।
बाजे छै झीणा झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा,
घूरे जुगो जूग झीणा,
धिन मेघ रिखों रा वीणा।।
गायक – लक्ष्मण तंवर करना।
प्रेषक – दिनेश पांचाल बुड़ीवाड़ा
8003827398
भाई भजन लिखा है पीथाराम जी ने
सिर पर हाथ अलख घणी रा
रखिए सच्चा सबद दीना
गुरु प्रताप पिथोजी बोले
हरी भजन लख दीना
ऐसे है