छोड़ चल्यो बिणजारो,
म्हारी भोली काया।
दोहा – मन कहे मैं धन करूं,
धन कर करूं जी गुमान,
राम कतरणी हाथ में,
राखे ला निजमान।
जो तू आया जगत में,
जगत हसा तू रोय,
ऐसी करनी कर चलो,
हम हंसे जग रोए।
छोड़ चल्यो बिणजारो,
म्हारी भोली काया,
म्हारी सुन्दर काया,
छोड़ चल्यों बिणजारो।।
जब तक तेल,
दिया माही बतिया जी,
हो रयो रेण उजारो,
बीत गया तेल,
बुझ गयी बतिया,
हो गयो रेण अँधारो।
म्हारी सुन्दर काया,
छोड़ चल्यों बिणजारो।।
पेट पकड़ थारी,
माता रोवे बंदा,
बाह पकड़ कर भाई,
लपट झपट थारी,
त्रिया रोवे,
छूट गयो घर परिवारों।
म्हारी सुन्दर काया,
छोड़ चल्यों बिणजारो।।
हाड़ जले ज्यूँ,
चन्दन की लकड़ी बंदा,
केस जले ज्यूँ घासा,
सोने जैसी तेरी,
काया जल गयी,
मच गयो हा हा कारो।
म्हारी भोली काया,
छोड़ चल्यों बिणजारो।।
राम सुमिर ले,
सुकरत कर ले जी,
घट घट राम उचारो,
कहत कबीरा,
सुनो भाई साधु,
पल पल राम उच्चारो।
म्हारी सुन्दर काया,
छोड़ चल्यों बिणजारो।।
छोड़ चल्यो बिणजारो,
म्हारी भोली काया,
म्हारी सुन्दर काया,
छोड़ चल्यों बिणजारो।।
स्वर – धर्मेंद्र गावड़ी।
प्रेषक – विनु सोनगर।
7023805071