ऐसा है मेरे श्री हरी का नाम,
कैसे उनका करूँ गुणगान,
बांकी कोई न करुणा निधान।।
निश्छल भक्ति तेरी हरदम होती है,
लेते हैं जब परीछा तब तब रोती है,
ग्राह-गज की कथा में कहा है,
गज की प्रभु ने बचाई थी जान,
ऐसा है मेरे श्री हरि का नाम।।
तेरी ही कृपा से प्रह्लाद बनते हैं,
ध्रुव सा महातपस्वी तेरा नाम जपते हैं,
जिनको विपदा से तुमने उबारा,
दे दिया उनको अपना ही धाम,
ऐसा है मेरे श्री हरि का नाम।।
एक बार में भी उपकार करते हैं,
निर्धन विप्र सुदामा के भंडार भरते हैं,
द्रोपदी की बचाई थी लाज,
उनको ही है मेरा प्रणाम,
ऐसा है मेरे श्री हरि का नाम।।
झूठे बेर खाकर संदेश देते है,
केवट का भी कहना कैसे मान लेते है,
सिल की तारी थी तुमने अहिल्या,
सबके पूरे हुए अरमान,
ऐसा है मेरे श्री हरि का नाम।।
ऐसा है मेरे श्री हरी का नाम,
कैसे उनका करूँ गुणगान,
बांकी कोई न करुणा निधान।।
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