दर पे बुलाले श्याम धणी,
अब और सहा नही जाता है,
अब तेरे दर्शन बिन बाबा,
हमसे रहा ना जाता है,
दर पे बुलालें श्याम धणी,
अब और सहा नही जाता है।।
तर्ज – मैं हूँ तेरा नौकर तेरी।
दर पे आऊँ दर्शन पाऊँ,
और कोई दरकार नही,
धन दौलत और शानो शौकत,
का भी मन में विचार नही,
तुम बिन व्यर्थ है सबकुछ बाबा,
अर्थ समझ ये आता है,
दर पे बुलालें श्याम धणी,
अब और सहा नही जाता है।।
जद जद ग्यारस आवे बाबा,
मन में मेरे आस जगे,
अब तो दर पे बुलाओगे तुम,
ऐसा मुझको श्याम लगे,
हम तेरे बिन रह नही सकते,
तू कैसे रह जाता है,
दर पे बुलालें श्याम धणी,
अब और सहा नही जाता है।।
तेरे मेरे बीच ये दूरी,
और सही ना जाती है,
तेरे ‘शिबू’ को रे साँवरिया,
तेरी याद सताती है,
तरस रहे है दर्शन को हम,
क्यों ना दरश दिखाता है,
दर पे बुलालें श्याम धणी,
अब और सहा नही जाता है।।
दर पे बुलाले श्याम धणी,
अब और सहा नही जाता है,
अब तेरे दर्शन बिन बाबा,
हमसे रहा ना जाता है,
दर पे बुलालें श्याम धणी,
अब और सहा नही जाता है।।
लेखक / प्रेषक – शिवम गुप्ता।
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