भवसागर तारण कारण हे,
रविनन्दन बन्धन खण्डन हे,
शरणागत किंकर भीत मने,
गुरुदेव दया कर दीनजने।।
हृदिकन्दर तामस भास्कर हे,
तुमि विष्णु प्रजापति शंकर हे,
परब्रह्म परात्पर वेद भणे,
गुरुदेव दया कर दीनजने।।
मनवारण शासन अंकुश हे,
नरत्राण तरे हरि चाक्षुष हे,
गुणगान परायण देवगणे,
गुरुदेव दया कर दीनजने।।
कुलकुण्डलिनी घुम भंजक हे,
हृदिग्रन्थि विदारण कारक हे,
मम मानस चंचल रात्रदिने,
गुरुदेव दया कर दीनजने।।
रिपुसूदन मंगलनायक हे,
सुखशान्ति वराभय दायक हे,
त्रयताप हरे तव नाम गुणे,
गुरुदेव दया कर दीनजने।।
अभिमान प्रभाव विमर्दक हे,
गतिहीन जने तुमि रक्षक हे,
चित शंकित वंचित भक्तिधने,
गुरुदेव दया कर दीनजने।।
तव नाम सदा शुभसाधक हे,
पतिताधम मानव पावक हे,
महिमा तव गोचर शुद्ध मने,
गुरुदेव दया कर दीनजने।।
जय सद्गुरु ईश्वर प्रापक हे,
भवरोग विकार विनाशक हे,
मन जेन रहे तव श्रीचरणे,
गुरुदेव दया कर दीनजने।।
भवसागर तारण कारण हे,
रविनन्दन बन्धन खण्डन हे,
शरणागत किंकर भीत मने,
गुरुदेव दया कर दीनजने।।
Upload By – Dr. Kapil Bhatt