हंसा हंस मिल्या हंस होई रे,
दोहा – जैसे फण पति मन्त्र सुणे,
राखे फण की कोर,
वैसे बीरा नाम से,
काल रहे मुख मोड़।
एक नाम को जाण के,
मेटा कर्म का अंक,
तब ही सो सुधि पाईये,
और जब जीव होय निसंग।
हंसा मत डर काल से,
कर मेरी प्रतीत,
अमर लोक पहुँचाय दूँ,
भव जल जासी जीत।
हंसा हंस मिल्या हंस होई रे,
जे थू बैठे बुगले रे साथे,
हंस केवे नही कोई रे।।
पांच नाम भवसागर का कहिये,
यां से मुक्ति नाही रे,
ओ कुल छोड़ मिलो सतगुरु से,
सहजो मुक्ति होइ रे।।
वे तो हंसा सीर कूप रा,
नीर कूप रा नाही रे,
नीर कूप ममता को रे पाणी,
ये तजिया हंस होइ रे।।
दस अवतार षट दर्शन कहिये,
वेद बणे नर सोई रे,
वेद छत्तीसों शास्त्र गीता,
ईता तजिया हंस होइ रे।।
मदवार होइ ने बैठो मंदिर में,
तिरवा री गम नाही रे,
देखन का साधु घणा मठधारी,
यामें ब्रह्म ठिकाना ना ही रे।।
तीन लोक पर बैठो यम राजा,
बैठो बाण संजोई रे,
समझ विचार चढ़ियो हंस राजा,
काल दियो हैं रोई रे।।
ये हंसा हैं अमर लोक का,
आवागमन में नाही रे,
कहे कबीर सुणो भाई साधु,
सतगुरु सेन लखाई रे।।
हंसा हंस मिल्या हंस होइ रे,
जे थू बैठे बुगले रे साथे,
हंस केवे नही कोई रे।।
गायक – नोरत जी टहेला।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052