यह मस्त महीना फागुन का,
श्रृंगार बना घर आंगन का,
इस रंग का यारों क्या कहना,
यह रंग है होली का गहना।।
आते है कान्हा सही मायने में,
रंग बरसाने बरसाने में,
बन जाते हैं छैला होली के,
गुण गाते नवल किशोरी के।।
कोई रंगता कोई रंगाता है,
कोई हंसता कोई हंसाता है,
दिल खोल बहारे हंसती है,
यह मस्तानों की मस्ती है।।
आनंद उन्माद का पार नहीं,
कहीं जोड़ी तो मनुहार कहीं,
कोई गाल गुलाले मलता है,
अपना सा मन मे लगता है।।
कहीं केशर रंग कमोरी में,
कहीं अबीर गुलाल है झोली में,
जिस मुखड़े पे ये रंग,
मंत्री के मुखड़े पे जचता है,
ये श्याम दीवाना लगता है।।
यह मस्त महीना फागुन का,
श्रृंगार बना घर आंगन का,
इस रंग का यारों क्या कहना,
यह रंग है होली का गहना।।
गायक / प्रेषक – द्वारका मंत्री देवास।
लेखक – जयंत सांखला देवास।
9425047895