मैं भानु लली की दया चाहता हूँ,
अटारी की ताजी हवा चाहता हूँ,
भटकता रहा हूँ मैं दुनिया के दर पर,
अब चौखट पे तेरी पनाह चाहता हूँ।।
के सुना है तेरा दर है जन्नत का दरिया,
पहुचने का श्यामा तुम्ही एक जरिया,
यही एक तुमसे वफ़ा चाहता हूँ,
अटारी की ताजी हवा चाहता हूँ।।
के दयालू हो थोड़ी दया मुज पे कर दो,
और मस्ती का प्याला मेरे दिल मे भर दो,
मैं बीमार हूँ कुछ दवा चाहता हूँ,
अटारी की ताजी हवा चाहता हूँ।।
मैं भानु लली की दया चाहता हूँ,
अटारी की ताजी हवा चाहता हूँ,
भटकता रहा हूँ मैं दुनिया के दर पर,
अब चौखट पे तेरी पनाह चाहता हूँ।।
गायक – चरनजीत।
लेखक – श्री राजीव शास्त्री जी।
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