हे शिव शंकर,
भक्ति की ज्योति,
अब तो जला दो मन में,
राग द्वेष से कलुषित ये मन,
उज्ज्वल हो पल छिन में।।
तेरी डमरू से निकले है,
ओमकार स्वर प्रतिपल,
मै रम जाऊँ तुझमे भगवन,
तू रम जा नैनन में,
है शिव शंकर,
भक्ति की ज्योति,
अब तो जला दो मन में।।
भस्म रमाये तन पे तू क्यों,
इसका राज बतादो,
बीत गये कुछ अब न बीते,
बाकी क्षण बातन में,
है शिव शंकर,
भक्ति की ज्योति,
अब तो जला दो मन में।।
किसका ध्यान धरे कैलाशी,
इसका ज्ञान अमर दो,
तू है या फिर ध्यान धरे जो,
वो बैठा कण कण में,
है शिव शंकर,
भक्ति की ज्योति,
अब तो जला दो मन में।।
हे शिव शंकर,
भक्ति की ज्योति,
अब तो जला दो मन में,
राग द्वेष से कलुषित ये मन,
उज्ज्वल हो पल छिन में।।
गीतकार – राजेन्द्र प्रसाद सोनी।
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