क्यों पानी में मल मल नहाये,
मन की मैल उतार,
मन की मैल उतार,
क्या पानी में मल मल नहावें,
मन को मैल उतार प्यारे।।
हाड़ माँस की देह बनी है,
झरे सदा नवद्वार पियारे,
क्या पानी में मल मल नहावें,
मन को मैल उतार प्यारे।।
पाप कर्म तन के नहिं छोड़े,
कैसे होय सुधार पियारे,
क्या पानी में मल मल नहावें,
मन को मैल उतार प्यारे।।
सत संगत तीरथ जल निर्मल,
नित उठ गोता मार पियारे,
क्या पानी में मल मल नहावें,
मन को मैल उतार प्यारे।।
ब्रह्मानंद भजन कर हरि का,
जो चाहे निस्तार पियारे,
क्या पानी में मल मल नहावें,
मन को मैल उतार प्यारे।।
क्यों पानी में मल मल नहाये,
मन की मैल उतार,
मन की मैल उतार,
क्या पानी में मल मल नहावें,
मन को मैल उतार प्यारे।।
गायक / प्रेषक – राजेन्द्रप्रसाद सोनी।
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