गौरी के नंदन,
करूँ तेरा वंदन,
आकर के मेरा कारज सँवारो,
यही प्रार्थना है,
यही याचना है,
रिद्धि-सिद्धि के संग आकर पधारो।।
तर्ज – ये माना मेरी जां।
बल बुद्धि विद्या मंगल के दाता,
तुम हो वरदाता भाग्य विधाता,
गौरा के प्यारे शिव के दुलारे,
विघ्न विनाशक स्वामी संकट निवारो,
यही प्रार्थना है,
यही याचना है,
रिद्धि-सिद्धि के संग आकर पधारो।।
कानों में कुण्डल मुकुट सोहे माथे,
गले पुष्प माला फरसा है हाथे,
आते हैं सुनकर भक्तों की विनंती,
सच्चे हृदय से जब भी पुकारो,
यही प्रार्थना है,
यही याचना है,
रिद्धि-सिद्धि के संग आकर पधारो।।
किये ऐसे कारज कि देवों ने माना,
प्रथम पूज्य तुमको दुनिया ने जाना,
हे मुक्तिदाता करें याद तुमको,
‘परशुराम’ चाहे दरशन तिहारो,
यही प्रार्थना है,
यही याचना है,
रिद्धि-सिद्धि के संग आकर पधारो।।
गौरी के नंदन,
करूँ तेरा वंदन,
आकर के मेरा कारज सँवारो,
यही प्रार्थना है,
यही याचना है,
रिद्धि-सिद्धि के संग आकर पधारो।।
लेख एवं स्वर – परशुराम जी उपाध्याय।
श्रीमानस-मण्डल,वाराणसी।
9307386438