काशी जाओ मथुरा जाओ,
या जाओ हरिद्वार,
मात पिता को ठुकराया तो,
सब कुछ है बेकार,
करो तुम उनकी सेवा,
खुशी हो सारे देवा।।
तर्ज – किसी का प्यार ना टूटे।
अन्धे मात पिता को,
श्रवण ने तीरथ कराये,
मात पिता की आज्ञा लेकर,
लौट अवध को आये,
जल भरने को पहुचा था,
दिया दशरथ ने मार,
करो तुम उनकी सेवा,
खुशी हो सारे देवा।।
मात पिता की आज्ञा,
ले राम लखन बन धायें,
चौदह वरस बिताकर,
फिर अयोध्या आये,
बन बन में फिरे भटकते,
लक्ष्मण सीताराम,
करो तुम उनकी सेवा,
खुशी हो सारे देवा।।
मात पिता की सेवा,
अब कोई कोई कर पाये,
जो सेवा करे इनकी,
वो जग से मुक्ति पाये,
इनकी सेवा से होता है,
जग से बेड़ा पार,
करो तुम उनकी सेवा,
खुशी हो सारे देवा।।
काशी जाओ मथुरा जाओ,
या जाओ हरिद्वार,
मात पिता को ठुकराया तो,
सब कुछ है बेकार,
करो तुम उनकी सेवा,
खुशी हो सारे देवा।।
स्वर – चॉदनी शास्त्री।
प्रेषक – बृजभूषण मिश्र।
9026455596