भक्ति की देखो एक ज्योत जली,
नाकोड़ा में भक्तो की टोली चली,
नाकोडा में भक्तो की टोली चली।।
तर्ज – कोई परदेशी मेरा।
गाँव गाँव और शहर शहर से,
भक्त आज निकले अपने घर से,
गली मोहल्लो से झूमती चली,
नाकोंडा में भक्तो की टोली चली।।
भक्तो की टोली चलती ही जाती,
करते हुए दादा भैरव की भक्ति,
भक्ति की शक्ति जो इनको मिली,
नाकोंडा में भक्तो की टोली चली।।
मेवानगर पहुँचे भक्त चलकर,
मस्ती में झूमे उठे दादा को देखकर,
दादा के चरणों मे शांति मिली,
नाकोंडा में भक्तो की टोली चली।।
टुकलिया परिवार आया नाकोंडा दरबार में,
भैरव देव जैसा दानी देखा न संसार मे,
जाग्रति कहे ‘दिलबर’ किस्मत खुली,
नाकोंडा में भक्तो की टोली चली।।
भक्ति की देखो एक ज्योत जली,
नाकोड़ा में भक्तो की टोली चली,
नाकोडा में भक्तो की टोली चली।।
गायिका – जाग्रति वडेरा।
लेखक / प्रेषक – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
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