एक हड्डी मुझसे करने लगी,
बयान रे सांवरिया।
दोहा – सेर करने हम जो निकले,
दिल में कुछ अरमान थे,
एक तरफ थी झाङिया,
दुजी तरफ शमशान थे।
ज्योंही पैर टिका हड्डी पर,
हड्डी के ये बयान थे,
ए मुसाफिर सम्भल के चल,
हम भी कभी ईन्सान थे।
एक हड्डी मुझसे करने लगी,
बयान रे सांवरिया,
जो पड़ी थी सुने से,
मैदान रे सांवरिया।।
ये भी देखें – क्या तन मांजता रे।
हड्डी बोली क्यू यार,
तु मुझको देख घिन्नाते हो,
पास हमारे आते ही,
मुह फेर के नाक दबाते हो,
बच बच कर के पग धरते हो,
छुने से बहोत कतराते हो,
धोखे से अगर छु गई तो,
घर जा कर के नहाते हो,
तेरे जैसा मैं भी था,
ईन्सान रे सांवरिया,
जो पड़ी थी सुने से,
मैदान रे सांवरिया।।
मलकर साबुन तेल बदन पर,
हम भी रोज लगाते थे,
और पहनने के खातिर,
सुन्दर कपङा सिलवाते थे,
आते थे जब लोग मिलने,
हम भी मिलने जाते थे,
बङे बङे दरबार में जा कर,
मान बढाई पाते थे,
अब मरघट पर खाते,
शुअर और श्वान रे सांवरिया,
जो पड़ी थी सुने से,
मैदान रे सांवरिया।।
हो गये अंग बेकार सभी,
जब निकल गई ये ज्योती है,
कहा गई वो घर की साधना,
कहा वो हीरे मोती है,
अपने स्वार्थ के खातिर,
भाई सारी दुनिया रोती है,
अन्त समय मे इस शरीर कि,
यही दुर्गती होती है,
गाडो फेको चाहे जलावो,
लाकर के मसान रे सांवरिया,
जो पड़ी थी सुने से,
मैदान रे सांवरिया।।
चाहे हो बस्ती का वासी,
चाहे बनवासी योगी,
चाहे पट्टा पहलवान हो,
चाहे हो सतत रोगी,
चाहे जंगल झाङी बीच हो,
चाहे संसारी भोगी,
जो भी चला गया है जग से,
उसकी यही हालत होगी,
पण्डित हो या शहनशाह,
सुल्तान रे सांवरिया,
जो पड़ी थी सुने से,
मैदान रे सांवरिया।।
यह कह कर चुप हो गई हड्डी,
मैने इस पर गौर किया,
सही बात सब निकली है जो,
हड्डी ने उपदेश दिया,
बुरा किसी को क्यो कहु,
पर सबसे बुरा है मेरा जिया,
गुरू क्रपा से हरदम निकले,
मेरे मुख से राम सिया,
कहे रसिले कब होगा,
कल्याण रे सांवरिया,
जो पड़ी थी सुने से,
मैदान रे सांवरिया।।
एक हड्डी मुझसें करने लगी,
बयान रे सांवरिया,
जो पड़ी थी सुने से,
मैदान रे सांवरिया।।
गायक – मदन राय।
प्रेषक – रामानन्द प्रजापत जूसरी।
9982292201