जब तेरी डोली निकाली जायेगी,
बिन मुहूरत के उठा ली जायेगी।।
तर्ज – दिल के अरमा आंसुओ में।
उन हकीमों से कहो यों बोल कर,
करते थे दावा किताबें खोल कर,
यह दवा हरगिज न खाली जायेगी।।
जर सिकंदर का यही पे रह गया,
मरते दम लुक़मान भी यों कह गया,
यह घड़ी हरगिज न टाली जायेगी।।
क्यों गुलों पे हो रही बुलबुल निसार,
है खड़ा माली वो पीछे होशियार,
मारकर गोली गिरा ली जायेगी।।
होगा जब परलोक में तेरा हिसाब,
कैसे मुकरोगे बता दो ऐ जनाब,
जब बही तेरी निकाली जायेगी।।
जब तेरी डोली निकाली जायेगी,
बिन मुहूरत के उठा ली जायेगी।।