इस जग में मानव तन,
मुश्किल से मिलता है,
हरि का तू भजन कर ले,
ये समय निकलता है।।
मानव तन हीरा है,
गफ़लत में मत खोना,
बिन भजन के ओ प्राणी,
रह जाएगा रोना,
इस तन का भरोसा क्या,
पल पल ये बदलता है,
हरि का तू भजन कर ले,
ये समय निकलता है।।
छल कपट द्वेष निन्दा,
चोरी जो करते है,
ये समझलो वो बन्दे,
जीते ना मरते है,
अपने हाथो विष का,
वो प्याला पीता है,
हरि का तू भजन कर ले,
ये समय निकलता है।।
विरथा जीवन उनका,
जो शुभ कर्म नही करते,
खाने पीने में तो,
पशु भी पेट भरते,
पापी प्राणी जग में,
बिन आग के जलता है,
हरि का तू भजन कर ले,
ये समय निकलता है।।
‘सदानन्द’ कहता,
जीवन को सफल करलो,
गुरू चरणों में रहकर,
हरि सुमिरन करलो,
हरि दर्शन करने को,
दिल ये मचलता है,
हरि का तू भजन कर ले,
ये समय निकलता है।।
इस जग में मानव तन,
मुश्किल से मिलता है,
हरि का तू भजन कर ले,
ये समय निकलता है।।
रचना – स्वामी सदानन्द जी।
गायन – स्वामी सच्चिदानंद आचार्य व संत राजूराम जी।
प्रेषक – विष्णु लटियाल।
9928412891