श्री श्याम नाम की ज्योत जगा,
जो श्याम से लौ लगाते है,
खाटू से चलकर बाबा,
उन भक्तों के घर आते है,
श्री श्याम श्री श्याम,
श्री श्याम श्री श्याम।।
तर्ज – है प्रीत जहाँ की रीत सदा।
भावों के भूखे है भगवन,
बस भाव से ही आते है,
त्याग के मेवा दुर्योधन का,
साग विदुर घर खाते है,
ध्रुव प्रहलाद या अजामिल को,
ये पल में पार लगाते है,
खाटू से चलकर बाबा,
उन भक्तों के घर आते है,
श्री श्याम श्री श्याम,
श्री श्याम श्री श्याम।।
विश्वास नहीं है गर तुझको,
एक बार बुला कर देख ज़रा,
कर्मा मीरा और द्रोपदी,
नरसी ने बुलाया जिस तरह,
अपने भक्तों की आँखों में,
ये आंसू देख ना पाते है,
खाटू से चलकर बाबा,
उन भक्तों के घर आते है,
श्री श्याम श्री श्याम,
श्री श्याम श्री श्याम।।
होगी नहीं कभी हार तेरी,
ये हारे का सहारा है,
छोड़ सिंहासन दौड़ पड़ा,
जब सुदामा ने पुकारा है,
‘दिलबर’ ‘पंकज’ और पार्थ कहे,
जो हर पल कृपा बरसाते है,
खाटू से चलकर बाबा,
उन भक्तों के घर आते है,
श्री श्याम श्री श्याम,
श्री श्याम श्री श्याम।।
श्री श्याम नाम की ज्योत जगा,
जो श्याम से लौ लगाते है,
खाटू से चलकर बाबा,
उन भक्तों के घर आते है,
श्री श्याम श्री श्याम,
श्री श्याम श्री श्याम।।
गायक – पंकज पार्थ।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
नागदा जक्शन, म.प्र. 9907023365