तू राम भज रहा है,
घनश्याम भज रहा है,
तो रखना भरोसा उसपे,
वो साथ चल रहा है,
तू राम भज रहा हैं,
घनश्याम भज रहा है।।
तर्ज – मै ढूंढता हूं जिसको।
ये तुलसी दास कहते है,
कलि में नाम अधारा है,
प्रभु का नाम जो जपता,
वो भव सागर से पारा है,
शंका नहीं तू करना,
भव पार हो रहा है,
तू राम भज रहा हैं,
घनश्याम भज रहा है।।
वो दिन में सूर्य की गर्मी,
बताओ कोन देता है,
ये चंदा रात को उगता,
शीतलता कोन देता है,
सुख दुख भी खेल है उसका,
वो खेल कर रहा है,
तू राम भज रहा हैं,
घनश्याम भज रहा है।।
तेरे मन के ही मन्दिर में,
प्रभु का वास रहता है,
तू दर दर क्यू भटकता है,
वो तेरे पास रहता है,
डुबकी लगा ले पगले,
ये भाव बह रहा है,
तू राम भज रहा हैं,
घनश्याम भज रहा है।।
ये ‘बिष्णु’ क्या कहे किसको,
हमारी कोन सुनता है,
जिसे कोई नहीं सुनता,
उसे तो राम सुनता है,
मै क्या रचुंगा रचना,
सब राम रच रहा है,
तू राम भज रहा हैं,
घनश्याम भज रहा है।।
तू राम भज रहा है,
घनश्याम भज रहा है,
तो रखना भरोसा उसपे,
वो साथ चल रहा है,
तू राम भज रहा हैं,
घनश्याम भज रहा है।।
गायक / प्रेषक – बिष्णु थिरानी।
9304508814