गुरू शरण में रेहणा रे चेला भाई,
थाने नवी नवी वस्तु मिलेगा रे,
नीत नवी वस्तु मिलेगा रे चैला भाई,
थारा जीव ने तो मुक्ती मिलेगा रे,
गुरू शरण में रेहणा रे चैला भाई।।
दे रणकार थारी नाभी से उठेगा,
तो वो दें दें डंका चडेगा रे,
नाभी पंथ थारा गणा दुरेला,
सब रंग पकड़ फिरेगा रे,
गुरू शरण में रेहणा रे चैला भाई।।
नाभी पंथ थारा उल्टा गुमेगा तो,
जब मेहरू दण्ड खुलेगा रे,
मेहरू दण्ड थारा पिछम का मारग,
वो सीधी बात करेगा रे,
गुरू शरण में रेहणा रे चैला भाई।।
बिना डंका री थारे जालर वाजे,
थाने झीणी झीणी ख़बर पड़ेगा रे,
घड़ियां रे शंख थारे बांसुरी वीणा,
एक अनहद राग सुनेगा रे,
गुरू शरण में रेहणा रे चैला भाई।।
दिन नहीं रेण दिवस नहीं रजणी,
नहीं वठे सुरज तपैला रे,
बिना बादल कि वर्षा वो वर्षे,
एक अमृत बुदं पिवेगा रे,
गुरू शरण में रेहणा रे चैला भाई।।
बिना बस्ती का देश अजब है,
नहीं वठे काल पड़ेगा रे,
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
थारा शीतल अंग करेला रे,
गुरू शरण में रेहणा रे चैला भाई।।
गुरू शरण में रेहणा रे चेला भाई,
थाने नवी नवी वस्तु मिलेगा रे,
नीत नवी वस्तु मिलेगा रे चैला भाई,
थारा जीव ने तो मुक्ती मिलेगा रे,
गुरू शरण में रेहणा रे चैला भाई।।
प्रेषक – जगदीश चन्द्र जटिया।
विशनपुरा मावली उदयपुर राजस्थान।
मो. 9950647154
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