चार खुट में फिरो भल्याई,
दिल का भेद नहीं देणा रे।
दोहा – सतगुरु दिख्या आवता,
दि जाजम बिछवाई,
फुला कि बरखा हुईं,
मारे रहि चमेली छाय।
चार खुट में फिरो भल्याई,
दिल का भेद नहीं देणा रे,
कर गुजरान गरीबी में रेणा,
ये सतगुरु जी रा केणा रे।।
गगन मंडल में गाय बियाई,
धरती में महिडो जमाया रे,
माखन माखन साधु खाया,
छाछ सकल बरताणा रे,
कर गुजरान गरीबी में रेणा,
ये सतगुरु जी रा केणा रे।।
मरदा सगं में करो दोस्ती,
क्या त्रिया सगं रेणा रे,
पल में राजी पल में बेराजी,
पल पल नार पराई रे,
कर गुजरान गरीबी में रेणा,
ये सतगुरु जी रा केणा रे।।
नैण बाद समझाऊँ रे जिव न,
परघर पावं न देणा रे,
इण पाणी से रतन निपजे,
हेल्ला नहीं गवाणा रे,
कर गुजरान गरीबी में रेणा,
ये सतगुरु जी रा केणा रे।।
फिर रया प्याला प्रेम का,
प्यासा हो सो पिणा रे,
गुरु शरणे जति गोरख बोल्या,
गगंन मण्डल घर करणा रे,
कर गुजरान गरीबी में रेणा,
ये सतगुरु जी रा केणा रे।।
चार खुट मे फिरो भल्याई,
दिल का भेद नहीं देणा रे,
कर गुजरान गरीबी में रेणा,
ये सतगुरु जी रा केणा रे।।
गायक – कमल योगी।
9829678735
bahut sundar